Skip to main content

हे माननीयों ! भाषा, साहित्य व कला बेबस क्यों

RNE Special

राज्य सरकार का एक साल पूरा हो गया। गाजे बाजे के साथ वर्षगांठ मनाई गई। कई घोषणाएं हुई। ज़रकर के कामों का ढोल पीटा गया। मंत्रियों को जिलों में भेजा गया। विकास दर्शन की प्रदर्शनी लगाई गई। पूरा सरकारी अमला एक साल को बेमिसाल बताने में लगा रहा। एक ही जुबान इतने सारे लोग कैसे बोल सकते हैं, देखकर आश्चर्य हुआ। सभी मंत्री, नेता, अधिकारियों की एक ही भाषा, एक ही बात, कमाल की जुगलबन्दी थी।

इन सबके बीच दूर कोने में खड़े इस सरकारी तामझाम को देख बारबार आकाश की तरफ निहारने का काम भी कुछ लोग कर रहे थे। ये थे राजस्थानी, हिंदी, उर्दू, पंजाबी, सिंधी, संस्कृत, बृज आदि भाषाओं के लेखक। इनके साथ थे रंगकर्मी, नृत्यकार, संगीतकार, लोक कलाकार, अन्य परफॉर्मर। इनका साथ दे रहे थे चित्रकार। सब उदास भाव से आकाश की तरफ देखते। आयोजन देखते और जमीन में नजरें गड़ा लेते। उनके चेहरे पर विवशता थी। बेबसी थी। हताशा थी। भीतर गुस्सा था। आक्रोश था। आग थी। जो वाजिब थी।

सब क्षेत्रों में काम हुआ, बस साहित्य – कला – संस्कृति को छोड़ दिया गया। एक साल से प्रदेश की सभी साहित्य व कला अकादमियां ठप्प पड़ी है। कोई काम ही नहीं हो रहा। समाज, व्यक्ति को दिशा देने वाली सैकड़ों पुस्तकों का प्रकाशन नहीं हो सका। अनेक अकादमियों में पांडुलिपि, प्रकाशन सहायता की योजनाएं है जिससे कई पुस्तकें पाठकों के सामने आती है। वो काम हुआ ही नहीं। ठीक इसी तरह साहित्य, कलाओं के सम्मान भी सैकड़ों हो सकते थे, वे भी नहीं हुए। असहाय, बीमार साहित्यकारों – कलाकारों को आर्थिक मदद मिलती है, उस पर भी ताला लग गया। नाटक, संगीत, नृत्य, लोककला आदि के आयोजन नहीं हो रहे। क्या इन सबसे समाज या व्यक्ति का नुकसान नहीं हुआ, सरकार इस बारे में सोचती क्यों नहीं। जबकि इनके लिए अलग से मंत्री है, अफसर है, सरकारी महकमे हैं। अफसोस, इस पर सत्ता पक्ष को तो चिंता है ही नहीं, मगर विपक्ष भी इन पर नहीं बोल रहा। वो भी बोले किस मुंह से, अपने शासनकाल में उसने भी 3.5 साल इस पर मौन रखा था। सत्ताएं साहित्य, कला व संस्कृति को सदा हाशिये पर क्यों रखती है। विचार तो होना चाहिए, विरोध भी बुलंद होना चाहिए। यही एक रास्ता बचा है।

लो आ गई ‘ जागती जोत ‘:

आखिरकार राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की मासिक पत्रिका ‘ जागती जोत ‘ एक लंबी अवधि के बाद प्रकाशित हो ही गई। मायड़ भाषा की यह पत्रिका प्रतिनिधि पत्रिका है। अकादमी में काम ठप्प था तो इसका प्रकाशन भी बंद था। सरकार ने अकादमी में अध्यक्ष नहीं लगाया पर पत्रिका का संपादक लगा दिया। संपादक नमनी शंकर आचार्य के प्रयासों का ही प्रतिफल है कि जागती जोत का एक संयुक्तांक व एक अंक आ गया। राजस्थानी साहित्य जगत में एक हलचल तो हुई। इसका समूचा श्रेय संपादक नमामि शंकर आचार्य को दिया जाना चाहिए। बधाई का कुछ हिस्सा सह संपादक शंकर सिंह राजपुरोहित व सचिव शरद केवलिया के हिस्से भी आना वाजिब है।

गौरहरी दास का साक्षात्कार अनुपम:

युवा रचनाकार अरमान नदीम ने स्थानीय दैनिक में साक्षात्कार विधा पर साप्ताहिक लेखन कार्य शुरू किया है। साधुवाद अरमान व दैनिक युगपक्ष को, इस कमजोर हुई साहित्यिक विधा को प्राणवायु देने का काम दोनों ने किया है। इसकी पूरे देश में एक गम्भीर चर्चा भी शुरू हुई है।

इस बार उड़िया के प्रख्यात साहित्यकार, पत्रकार गौरहरी दास का साक्षात्कार था। उसे हर गंभीर रचनाकार को पढ़ना चाहिए, भले ही वे न पढ़े जो केवल अखबार में साहित्यकार के रूप में छपने की चाह भर रखते हैं। इस साक्षात्कार में एक तरफ इस उड़िया रचनाकार ने जहां साहित्य का ध्येय बताया है वहीं इसकी उपादेयता को भी उजागर किया है। साहित्य ग्लैमर नहीं, सामाजिक दायित्त्व है, ये बात सामने आई। अरमान के सवाल के जवाब में गौरहरी ने भारत के वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य को भी पूरा खोलकर रख दिया। अनुपम सवाल, व्यावहारिक व ज्ञान की गंगा से निकले जवाब। अरमान व गौरहरी को हार्दिक बधाई। जो सच्चे, अच्छे साहित्यकार हैं, इसे पढ़े। जिनको केवल साहित्य की दुकान चलानी है, अखबार की खबर बनना है, वे इससे दूर ही रहें, उनके समझ और काम में नहीं आयेगा।



मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ के बारे में 

मधु आचार्य ‘आशावादी‘ देश के नामचीन पत्रकार है लगभग 25 वर्ष तक दैनिक भास्कर में चीफ रिपोर्टर से लेकर कार्यकारी संपादक पदों पर रहे। इससे पहले राष्ट्रदूत में सेवाएं दीं। देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में आचार्य के आलेख छपते रहे हैं। हिन्दी-राजस्थानी के लेखक जिनकी 108 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। साहित्य अकादमी, दिल्ली के राजस्थानी परामर्श मंडल संयोजक रहे आचार्य को  अकादमी के राजस्थानी भाषा में दिये जाने वाले सर्वोच्च सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सूर्यमल मीसण शिखर पुरस्कार सहित देशभर के कई प्रतिष्ठित सम्मान आचार्य को प्रदान किये गये हैं। Rudra News Express.in के लिए वे समसामयिक विषयों पर लगातार विचार रख रहे हैं।